जसनाथ जी बीकानेर के कतरियासर के रहने वाले एक लोक संत थे, जिनका जन्म ज्याणी जाट परिवार में हुआ तथा जसनाथी पंथ चलाया और निर्गुण ईश्वर उपासक थे, एक कथा प्रचलित हैं जिसके अनुसार इनका जन्म न होकर ये अवतारित हुए थे
बताते है कि हमीर जी निसंतान थे, एक दिन उनको सपने में गुरु गोरखनाथ जी ने दर्शन दिया, गोरखनाथ जी ने हमीर जी को दाभला तालाब की तरफ जाने को कहा तो हमीर जी सवेरे उठकर अपने घोड़े के साथ डाभला की सीमा तक गये तो उनके घोड़े ने आगे कदम बढ़ाना बंद कर दिया, तब वे घोड़े की रस्सी पकड़े पैदल चल पड़े.
थोड़ी ही दूर जाने पर तालाब की मेड के पास एक घने फैले जाल के पेड़ की तरफ उनकी नजर गई. जाल की छाँव में एक आभामंडित नन्हा शिशु दिखाई दिया. एक बाघ और सर्प बालक की रखवाली कर रहे थे,
कहते है हमीर जी के ईश्वर वन्दना के बाद नाग और बाघ दूर हो गये तथा हमीर जी बालक को घर ले आए और उनका नाम जसवंत रखा गया. महज 24 वर्ष की आयु में जसनाथ जी महाराज ने जीवित समाधि कतरियासर में ले ली थी,कतरियासर जसनाथ जी के मंदिर का विडियो आपको देखने के लिए travel with kalwania channel पर मिल जाएगा,
जसनाथी पंथ के 36 नियम हैं. तथा उनका समाधि स्थल बीकानेर से 45 किमी दूर स्थित कतरियासर में हैं. यह जसनाथी और सिद्ध नाथ लोगों के लिए पवित्र धाम हैं यहाँ बड़ा मेला भी भरता हैं. हरोजी महाराज (बम्बलू) , हंसोजी महाराज (लिखमादेसर) , पापलोजी महाराज (पुनरासर) ये जसनाथ जी के शिष्य थे.
जसनाथ जी को मानने वाले जसनाथी कहलाते हैं मुख्यतः जाट जाति के कई लोग इन्हें अपना आराध्य मानते हैं. इनके अनुयायी गले में काले ऊन का धागा धारण करते हैं. भावनाएँ के जरिये गाँव गाँव तक संगठन का विस्तार हैं. जसनाथ जी महाराज ने पहला चमत्कार एक वर्ष की अल्पायु में दिखाया जब वे अंगारों से भरी अंगीठी पर बैठ गये थे, जब माँ रूपादे ने झट से उन्हें दहकते अंगारों से बाहर निकाला तो पाया कि उनके शरीर पर जलने का कोई भी निशान नहीं था.
आज भी जसनाथी सिद्ध भक्त जलते अंगारों पर नृत्य करते हैं.
बालक जसवंत ने दो वर्ष की अवस्था में ही दो मण दूध पी लिया था,
इस तरह तीसरा परचा एक ब्राह्मण को दिया, कहते है जब शिक्षा दीक्षा के लिए जसंवत को ब्राह्मण को पास ले गये तो पंडित ने कहा अभी बालक बहुत छोटा जब थोडा व्यस्क हो जाने पर शिक्षा देंगे तभी उन्होंने पच्चीस वर्ष के आयु के युवक का रूप धारण कर लिया था. महज 24 वर्ष की आयु में जसनाथ जी महाराज ने जीवित समाधि ले ली थी, उनका समाधि स्थल बीकानेर से 45 किमी दूर स्थित कतरियासर में हैं. यह जसनाथी और सिद्ध नाथ लोगों के लिए पवित्र धाम हैं यहाँ बड़ा मेला भी भरता हैं. हरोजी महाराज (बम्बलू) , हंसोजी महाराज (लिखमादेसर) , पालोजी महाराज (पुनरासर) ये जसनाथ जी के शिष्य थे. आज हम जसनाथ जी के मंदिर आए है जो जसरासर गाव नोखा तहसील म है आए आपको दर्शन करवाते है ओर याह कि जानकारी लेते है
इस ब्लॉग मैं आपको जसरासर गाव और इस गाव में बने जसनाथ जी मंदिर के बारे में चित्र के साथ बताएँगे
जसरासर गांव नोखा रोड पर बीकानेर जिले में स्थित है बीकानेर से यह 40 किलोमीटर की दूरी पर है जसरासर गांव पहुंचते हैं तो मेन बस स्टैंड से पश्चिम की ओर रेत के टीले पर एक मंदिर दिखाई देगा यही मंदिर जसनाथ जी का मंदिर है जो आप इस फोटो में देख रहे हैं इसका रास्ता थोड़ा सा दक्षिण से पश्चिम की ओर जाएगा इस मंदिर का मेन गेट है दक्षिण दिशा में खुलता है मेन गेट के अंदर प्रवेश करने के बाद में राइट साइड में एक बड़ा सा हॉल बना हुआ है ठीक उसी के सामने लेफ्ट साइड मैन मंदिर जसनाथ जी का है
जसनाथ जी मंदिर की दो पिक है , सीढ़िया के पास वाला सबसे पुराना है मंदिर
जसरासर के जसनाथ जी के मंदिर की स्थापना विक्रम संवत 2048 में हुई थी जैसे कि आप तस्वीर में देखे हैं ये जो बड़ा मंदिर देख रहे हैं यह बाद में बना हुआ है और सीढ़ियो के पास में जो दो छोटे मंदिर दिख रहे हैं यह सबसे पुराने मंदिर है इस मंदिर के परिसर में गोरखनाथ जी का भी मंदिर है इस मंदिर की पूजा गोपाल दास जी करते हैं और लास्ट वाली तस्वीर में जो आप देख रहे हैं यह गांव की फोटो है यह मंदिर काफी हाइट पर बना हुआ है और गांव मंदिर से नीचे दिखाई देता है गाँव पूरा ढलान में बसा हुआ है मंदिर के परिसर से ही गांव की फोटो ली गई है ये अप्रेल २०२३ तक की बात है